बंद हो गया दाना पानी,
नहीं मिला जब राशन
कस के बांधो पेट पे गमछा,
और सुनो सब नेताजी का भाषण।
Hindi poem
आसिफा
Long poems
आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ ,
तुम कहीं गुड्डे-गुड़िया की शादी के,
इन्तज़ाम में व्यस्त होगी।
या फिर नए चमकदार कपड़े पहने ,
बाबा का हाथ थामे मेले में जा रही होगी।
आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ,
कि तुमने कोई नया गाना सीखा होगा
जो तुम दिन रात गाती होगी |
या फिर स्कूल से कुछ नया सीख कर
अम्मा को बताती होगी।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ,
कि तुम जोर से खिलखिलाती होगी
इतना जोर से कि , बगल वाले चाचा जो कभी नहीं हॅसते
वो भी मुस्कुराने लगें।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ
कि तुम ज़िद करती होगी
अड़ जाती होगी अपनी बात पे
अम्मा – बाबा सब मिल के तुम्हें मनाते होंगे |
मेरी एक आखिरी उम्मीद है
कि जहाँ तुम गयी हो
वहाँ किसी का कोई नाम ना हो।
और ज्यादा कुछ नहीं बचा है लिखने को
और लिखने से क्या बदल जाएगा , है ना।
उम्मीद पे दुनिया कायम है ,
ऐसा मेरी अम्मा कहती हैं
तो मैं बस उम्मीद करता हूँ।
पाठशाला
Long poemsआओ धर्म – जात की पुस्तक खोलें,
पढ़े लाइने जोर जोर से
ऊँच -नीच की कविता बोलें
शंका की फिर स्याही घोलें
तुझको तेरे नाम से तोलें
इतिहास टटोलें ,
द्वेष भरा हर पन्ना खोलें
तारीखों , वर्षों का सन्दर्भ निकालें
फिर अपने – अपने मोर्चे संभालें
तर्कों के अब तीर चलेंगे
वाद – विवाद गंभीर चलेंगे
हिंसा के इस वृहद् मार्च में
सब देवगड़ और पीर चलेंगे
छोड़ छन्द चौपायों का चक्कर
तुलसी धनुष पे ताने तीर चलेंगे
शेर शायरी रख ताखे पे ,
अब ग़ालिब लेकर शमशीर चलेंगे
सब वीर लड़ेंगे, काटेंगे
चौका चूल्हा सब बाटेंगे
लोकतंत्र के फटे ढोल
रण-भूमि में दिन भर बाजेंगे
इधर मौत, उस ओर जश्न
उधर मरे तो हम नाचेंगे
देखो-देखो गौर से देखो
क्या से क्या संसार हुआ
हर आँगन शमशान खुला
सपना शांति का साकार हुआ
अब खून सने जनेऊ ढूंढो
और जले हुए ताबीज़ संभालो
सब अपनी अपनी छाती पीटो
और फिर से कटने मरने की,
नयी कोई तरकीब निकालो ।
शुरू करते हैं
Long poemsछोड़ दे बेचैन रहना
चलो जो बन पाए वो करते हैं
लड़ते जाना भिड़ते जाना
तो हिम्मत है ही
कभी-कभी हिम्मत है ये भी कहना,
कि डरते हैं
मंजिल दौड़कर पा जाओगे
तो फिर क्या दौड़ने का मजा
आइये हुजूर जरा
मुंह के बल भी गिरते हैं
कभी जो हो जाए,
इज़्ज़त का फालूदा
फ्रिज में रखना और कहना,
चलो अब इसको ठंडा करते हैं
हारने के डर से बैठे हो,
अखाड़ा छोड़कर
आओ दो दो हाथ करें
कीचड़ में कुश्ती लड़ते हैं
तमाशा देखने बैठी है दुनिया
और हम तुम बन्दर बन बीच खड़े
बाँध घुँघरू ,नाच मेरे संग
भले ही दुनिया लाख कहे ,
देखो दो मूरख बन्दर क्या करते हैं ।
रंग
short poemsरंगों का बड़ा शौक है उसे ,
जिस दिन से आयी वो घर में,
परदे गुलाबी हो गए और जिंदगी सुनहरी ।
याद है
Long poemsयाद है वो शहर जहाँ ख्वाबों के तकिए होते थे
वजहों की बत्ती गुल करके हम नींद की फलियाँ बोते थे
याद है जब नर्म धूप से दर्द पिघल से जाते थे
नीले नीले से अम्बर में हम मीलों उड़ के आते थे
याद है वो रात की चादर जिनसे तारे टूटा करते थे
और हम चुपके से आँखे मूंदे एक लम्बी सी ख्वाहिश करते थे
याद है वो खेत जहाँ फसलें खुशियों की पकती थीं
मुट्ठी भर ही मिले सही पर कुछ कुछ सबमे बटती थीं
तभी किसी ने टोका मुझे और बोला ये कौन सा शहर है भाई
सपना – वपना देख रहे हो क्या , लगता है बड़े दिन बाद आये हो
शहर तो वो देखो भागे जा रहा है
कई साल हो गए जागे जा रहा है
शहर के पास अब काम धंधा है
तुम जब मिले थे तब शायद काम पर नहीं जाता था
अभी भी आवाज दोगे तो एक नज़र देखेगा तुम्हे
पर रुकेगा नहीं , अब वो किसी के लिए नहीं रुकता
न रुकता है न थकता है ,
और हाँ ,
ख्वाब और ख्वाहिश अब यहाँ नहीं रहते
दोनो एक दिन जाते दिखे फिर लौट के नहीं आये
उनके घरों में अब बहरूपिये रहते हैं
तुम भी मिल आओ ।
मनरंगी
short poemsचंगे मन के रंग अनेक
रंगों में डूबा मनरंगी |
आइना
short poemsआइना शक्लें जुदा कर गया
मेरी नस्लें पता कर गया
निगाहें ढूढती रहीं सरहदों के निशाँ
बस यहीं वो दगा कर गया ।
बॅटवारा
Long poemsना जाने इसकी ग़लती थी या उसकी ग़लती थी
बस रेल-गाड़ियाँ लाशों से भरी चलती थी
मौत मज़हब की बात करती थी
सहमी हुई दुआएँ अजूबों को याद करती थी
जिन्दगी अब एक लकीर की मोहताज़ थी
कल रात जो चीख सुनी वो कोई जानी – पहचानी ही आवाज थी
पीछे छूट गए घरों में अब खौफ रहता था
घर भी उसके , गांव भी उसके , शहर भी उसके
भागते इन्सानों को देख बस हसता रहता था
प्यार मुहब्बत पटरियों पे पड़े मिलते थे लहूलुहान
सरहद पे दौड़ती रेलगाड़ियाँ थी शायद इस बात से अंजान
कहने को तो हजारों लोग जो उन रेलगाड़ियों में सवार हुए
पर बड़ी कोशिशों के बाद भी, बस मातम ही थे जो सरहद के आर पार हुए ।
दुनिया
short poemsसब कुछ बिल्कुल बना मिले,
ये दुनिया ऐसी कहाँ मिले |
जो तू माँगे तो खाक मिले,
जो ना माँगे तो जहाँ मिले |