
पहचान
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आओ धर्म – जात की पुस्तक खोलें,
पढ़े लाइने जोर जोर से
ऊँच -नीच की कविता बोलें
शंका की फिर स्याही घोलें
तुझको तेरे नाम से तोलें
इतिहास टटोलें ,
द्वेष भरा हर पन्ना खोलें
तारीखों , वर्षों का सन्दर्भ निकालें
फिर अपने – अपने मोर्चे संभालें
तर्कों के अब तीर चलेंगे
वाद – विवाद गंभीर चलेंगे
हिंसा के इस वृहद् मार्च में
सब देवगड़ और पीर चलेंगे
छोड़ छन्द चौपायों का चक्कर
तुलसी धनुष पे ताने तीर चलेंगे
शेर शायरी रख ताखे पे ,
अब ग़ालिब लेकर शमशीर चलेंगे
सब वीर लड़ेंगे, काटेंगे
चौका चूल्हा सब बाटेंगे
लोकतंत्र के फटे ढोल
रण-भूमि में दिन भर बाजेंगे
इधर मौत, उस ओर जश्न
उधर मरे तो हम नाचेंगे
देखो-देखो गौर से देखो
क्या से क्या संसार हुआ
हर आँगन शमशान खुला
सपना शांति का साकार हुआ
अब खून सने जनेऊ ढूंढो
और जले हुए ताबीज़ संभालो
सब अपनी अपनी छाती पीटो
और फिर से कटने मरने की,
नयी कोई तरकीब निकालो ।