आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ ,
तुम कहीं गुड्डे-गुड़िया की शादी के,
इन्तज़ाम में व्यस्त होगी।
या फिर नए चमकदार कपड़े पहने ,
बाबा का हाथ थामे मेले में जा रही होगी।
आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ,
कि तुमने कोई नया गाना सीखा होगा
जो तुम दिन रात गाती होगी |
या फिर स्कूल से कुछ नया सीख कर
अम्मा को बताती होगी।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ,
कि तुम जोर से खिलखिलाती होगी
इतना जोर से कि , बगल वाले चाचा जो कभी नहीं हॅसते
वो भी मुस्कुराने लगें।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ
कि तुम ज़िद करती होगी
अड़ जाती होगी अपनी बात पे
अम्मा – बाबा सब मिल के तुम्हें मनाते होंगे |
मेरी एक आखिरी उम्मीद है
कि जहाँ तुम गयी हो
वहाँ किसी का कोई नाम ना हो।
और ज्यादा कुछ नहीं बचा है लिखने को
और लिखने से क्या बदल जाएगा , है ना।
उम्मीद पे दुनिया कायम है ,
ऐसा मेरी अम्मा कहती हैं
तो मैं बस उम्मीद करता हूँ।