सरहद पर वो खड़े रहे
स्वाभिमान पर अड़े रहे
वक़्त आया तो भिड़ गए वो मौत से
माँ की तस्वीर, बच्चों के ख़त
उनके बटुओं में पड़े रहे ।
सरहद पर वो खड़े रहे
स्वाभिमान पर अड़े रहे
वक़्त आया तो भिड़ गए वो मौत से
माँ की तस्वीर, बच्चों के ख़त
उनके बटुओं में पड़े रहे ।
वजह ये नहीं है , या थी , या रहेगी,
कि तुम कितने बुद्धिमान हो
वजह हमेशा से यही है , यही थी और रहेगी,
कि तुम कहाँ पे जन्मे , तुम किसकी संतान हो
मंजिलों की कश्मकश
उलझा गयी कुछ यूँ हमें
सर खपाना याद रखा
पर मुस्कुराना भूल आये
आकड़ों की गश्त से
सहमे हुए हैं ख्वाब सारे
हमने हर पैमाना याद रखा
पर गुनगुनाना भूल आये
वायरस और भूख के बीच जंग जारी है
गरीब होना भी एक वैश्विक महामारी है
वक्त की मांग है कि ,
तुम तीन साल में ही तीस की हो जाओ
ये बचपन किस काम का है तुम्हारे
ये बस तुम्हें अबोध रखेगा |
तुम कैसे समझ पाओगी जब कोई हाथ,
अनायास ही तुम्हें टटोल जाएगा |
या फिर कोई पुचकार के तुम्हें,
मिठाई के बहाने कहीं और ले जाएगा |
तुम तो अभी दादा – दादी को भी,
नहीं पहचान पाती कभी कभी |
तुम कैसे इन हजारों चेहरों में
सच और झूठ पहचान पाओगी |
तुम कैसे पढ़ पाओगी,
की किसी की आँखों में आज वहशीपन है,
या कोई हत्या के इरादे से आया है आज |
तुम्हारी वर्णमाला की किताब तो अभी कल ही आयी है
और हत्या तो काफी कठिन शब्द है |
तभी मैं कह रहा हूँ ,
उतार फेंको ये बचपना , और नाखून बड़े करो
नोचना सीखो , लात मरना सीखो |
ये गुड़िया और बाकी के मुलायम खिलौने जला दो
समय ने इनको नकारा बना दिया है |
बंद हो गया दाना पानी,
नहीं मिला जब राशन
कस के बांधो पेट पे गमछा,
और सुनो सब नेताजी का भाषण।
आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ ,
तुम कहीं गुड्डे-गुड़िया की शादी के,
इन्तज़ाम में व्यस्त होगी।
या फिर नए चमकदार कपड़े पहने ,
बाबा का हाथ थामे मेले में जा रही होगी।
आसिफा मैं उम्मीद करता हूँ,
कि तुमने कोई नया गाना सीखा होगा
जो तुम दिन रात गाती होगी |
या फिर स्कूल से कुछ नया सीख कर
अम्मा को बताती होगी।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ,
कि तुम जोर से खिलखिलाती होगी
इतना जोर से कि , बगल वाले चाचा जो कभी नहीं हॅसते
वो भी मुस्कुराने लगें।
आसिफा मै उम्मीद करता हूँ
कि तुम ज़िद करती होगी
अड़ जाती होगी अपनी बात पे
अम्मा – बाबा सब मिल के तुम्हें मनाते होंगे |
मेरी एक आखिरी उम्मीद है
कि जहाँ तुम गयी हो
वहाँ किसी का कोई नाम ना हो।
और ज्यादा कुछ नहीं बचा है लिखने को
और लिखने से क्या बदल जाएगा , है ना।
उम्मीद पे दुनिया कायम है ,
ऐसा मेरी अम्मा कहती हैं
तो मैं बस उम्मीद करता हूँ।
तो थोड़े पेड़ और काट दो
ऐसी भी क्या मजबूरी है
सारे खुश हैं प्रगति देखकर
इसमें सबकी मंजूरी है
इतने से क्या होता है
मैंने तो नहीं देखा कि ,
पेड़ कटे तो जंगल रोता है
अरे ये हमारी उत्पादकता का औजार है
और तुम कहते हो कि बच्चे साँस लेने से बीमार हैं
ऐसा कुछ नहीं होता
ये तो विकास रोकने के बहाने हैं
जरा पता करो वो ईंट के ट्रक कब आने हैं
ध्यान रखना ईटें हर जगह बिछ जायें
नया शहर ये पढ़े-लिखों का ,
उनको मिट्टी ना दिख जाए |
via सवाल